शब-ए-बरआत पर विशेष...
उलेमाओ ने शब-ए-बरआत की अहमियत की बयां
सात मार्च को शब-ए-बरआत का त्योहार मनाया जाएगा। शब-ए-बरआत मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। मुस्लिम समुदाय में ये त्यौहार बेहद खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। मदीना मस्जिद के माैलाना जमशेद ने साेमवार काे जाैहर की नमाज के बाद शब-ए-बरआत की अहमियत के बारे में अकीदतमंदाें काे जानकारी दी। इस दिन कुरान ए पाक की तिलावत से लेकर नमाज अता करने की भी अपील की।
मौलवी याकूब के अनुसार, यह रात पूर्व के समय में किए गए कर्मों का लेखा जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली मानी जाती है। इसलिए इस रात को शब-ए-बरआत के तौर पर जाना जाता है। इस महीने में अल्लाह ने वायदा किया है कि अगर कोई अपने गुनाहों से माफी मांगे और उस गुनाह को दोबारा न करने का वादा करे तो उसके गुनाहों को माफ कर दिया जाएगा।
इस दिन मुस्लिम समाज के लोग पूरी रात इबादत में गुजारने के साथ अपने बुजुर्गों की कब्रों पर जाकर उनकी मगफिरत की दुआ की जाएगी। शब-ए-बरआत को देखते हुए कब्रिस्तानों और मस्जिदों में तैयारियां शुरू हो गईं। शब-ए-बारात की रात को मुसलिम समुदाय के लोग अपनों की कब्र पर जाते है और उनके हक में दुआएं मांगते है।
महिलाओ काे भी करनी चाहिए कुरान-ए-पाक की तिलावत
हाफिज अय्यूब, हाफिज कासिम का कहना है कि इस दिन मुस्लिम महिलाएं इस रात घर पर रह कर ही नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं। इस्लाम धर्म के अनुसार इस रात अल्लाह अपनी अदालत में पाप और पुण्य का निर्णय लेते हैं और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करते हैं। जो लोग पाप करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं, उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर के जन्नत में भेज दिया जाता है।
पूरी रात इबादत की हाेती है
हाफिज हाजी वकील अहमद बताते हैं कि
इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। बरकत वाली इस रात में हर जरूरी और सालभर तक होने वाले काम का फैसला किया जाता है और यह तमाम काम फरिश्तों को सौंपा जाता है। मुसलिम समुदाय के कुछ लोग शब-ए-बरआत के अगले दिन रोजा भी रखते है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बरआत तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है।