कारगिल विजय दिवस : कारगिल युद्ध में मृत घोषित होने पर बने भारतीय ब्लेड रनर (मेजर डीपी सिंह)

कारगिल विजय दिवस पर एक्सप्रेस न्यूज़ 24x7 की विशेष स्टोरी .......


आज हम आपको भारतीय सेना की ऐसी हस्ती से मिलाने जा रहे है जो भारत माता के लिए कारगिल युद्ध मे लड़ते लड़ते मर्त घोषित होने के बावजूद भी अपने साहस के चलते बने ब्लेड रनर



कारगिल युद्ध मे घायल होने पर जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तब उनका शरीर खून से लथपथ था कई हड्डियां टूट चुकी थी और उनकी आंते भी फट चुकी थी । उस समय उनके शरीर ने भले ही काम करना बंद कर दिया हो लेकिन मेजर देवेंद्र पाल सिंह की हिम्मत ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा था । युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए वह बुरी तरह से घायल हो चुके थे ।
भारत-पाकिस्तान सीमा पर 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान एक तोप का गोला उनके नजदीक आ फटा था। उन्हें नजदीकी आर्मी हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उन्हें आर्मी सर्जन ने मृत घोषित कर दिया । मृत घोषित होने के बाद उन्हें अंतिम संस्कार के लिए नजदीकी शवदाह गृह ले जाया गया । लेकिन मेजर देवेंद्र पाल सिंह अभी मरने के लिए तैयार नहीं थे यहां एक अन्य चिकित्सक ने देखा कि अभी तक उनकी सांसे चल रही है । उसके बाद जो हुआ वह आज इतिहास में दर्ज है । मेजर देवेंद्र पाल सिंह मौत को मात देकर आज लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं । आज जब मेजर देवेंद्र पाल सिंह को देखते हैं तो उनकी इस कहानी पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। कि कैसे एक जवान ने मौत को मात दे दी । उनकी यह कहानी अविश्वसनीय लगती है ।
लेकिन अब उन्हें इंडियन ब्लेड रनर के रूप में जाना जाता है । वह पिछले 16 वर्षों से मैराथन दौड़ रहे है । आर्मी विशेषज्ञ के अनुसार जहां मोर्टार गिरता है उसके 8 गज के भीतर किसी के भी बचने की संभावना न के बराबर होती है।  उनका पूरा शरीर मोर्टार से छलनी था । उनका पेट में दो जगह से खुला हुआ था। डॉक्टर के पास उनकी कुछ आंतों को निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उनके पैरों को भी काटना पड़ा ।
मेजर दिव्यांग हो चुके थे  एक पैर नहीं था। वह बेड पर थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी उनके अंदर वह जज्बा था।  जिसने उन्हें प्रेरित किया । जब मोर्टार उनके नजदीक आकर गिरा तब उन्होंने बहुत तेजी से डाई लगाई और जितना उससे दूर हो सके दूर जाकर गिरे । तब उनकी सोच ने उनकी जान बचाई थी लेकिन अब उन्हें नए सिरे से जीना सीखना था।
 बेंगलुरु में इंडिया इंक्लूजन के मौके पर उन्होंने अपनी इस स्टोरी को शेयर किया तथा लोगों को इसकी जानकारी दी । यह मेरे दूसरे जीवन की शुरुआत थी क्या हुआ अगर लाइफ पहले जैसी नहीं रही? वैसे भी यह पहले जैसी कभी नहीं होगी उन्होंने अपने शरीर को विकलांगता के रूप में लेने का फैसला किया उन्होंने इसके बजाय उसे एक चुनौती के रूप में देखा वह लगभग 1 साल तक अस्पताल में रहे शायद ही किसी को विश्वास था कि वह फिर कभी चल पाएंगे लेकिन उनके दिमाग में कुछ और ही था उन्होंने सोचा सिर्फ चलना ही क्यों? मैं तो दौड़ना चाहता हूं मेजर डीपी सिंह का भारतीय ब्लेड रनर के तौर पर परिवर्तन रातों-रात नहीं हुआ । बल्कि वे हमेशा से ही एक जांबाज योद्धा रहे है । उन्होंने अपनी स्टोरी में बताया मैं अपनी चोटों से परे जाकर खुद को प्रेरित करने के लिए दौड़ना चाहता था । प्रोस्थेटिक पैर के साथ दौड़ना उनके लिए कठिन ही नहीं था बल्कि यह बहुत ज्यादा दर्दनाक भी था। वह याद करते हुए कहते हैं मैं गिरना नहीं चाहता था । जितनी बार भी मैं गिरा मैंने इसे दृढ़ता की परीक्षा के रूप में लिया इस तरह फिर से कोशिश करना आसान हो जाता है उनका पहला प्रोस्थेटिक पैर लंबी दूरी की दौड़ की तुलना में इस पैर से ज्यादा बेहतर था । लेकिन यह सभी के लिए काफी हैरान करने वाला था कि मेजर इसी पैर से मैराथन दौड़ रहे थे । मेजर का एक वीडियो ओकलाहोमा सिटी के हैंगर क्लीनिक में प्रोस्थेटिक्स विशेषज्ञों ने देखा उन्होंने मेजर को एक बेहतर स्थिति में फिट करने के लिए इनवाइट किया । इस पैर ने उन्हें लंबी दूरी की दौड़ के लिए जरूर फ्लैक्सिबिलिटी दी । अधिकांस लोग इस तरह के पैर से दौड़ नही सकते लेकिन डीपी सिंह को इससे कोई भी परेशानी नहीं है ।

 आज वह एक मोटिवेशनल स्पीकर भी है जो पूरे भारत के लोगों को प्रेरित करते हैं।  इसके अलावा वे भारतीयों को स्पोर्ट्स के लिए प्रेरित भी करते हैं । वह कहते हैं कि मैंने इस स्पोर्ट्स ग्रुप की शुरुआत मेरे जैसे लोगों को प्रेरित करने के लिए की है स्पोर्ट्स आत्मविश्वास बनाने और विकलांगता को दूर करने में मदद कर सकता है मेरे जैसे लोगों को आम तौर पर शारीरिक रूप से विकलांग कहा जाता है । लेकिन मेरा मानना है कि हम लाइफ चेंजर से अपने शरीर का एक हिस्सा खोकर भी लाइफ में काफी कुछ अच्छा कर सकते है। शरीर का कोई अंग खो देना किसी के लिए बहुत बड़ा आघात होता है । आपका परिवार और दोस्त इस दर्दनाक घटना के बाद जीवन की कल्पना नहीं रखते । मेजर आगे कहते हैं जब किसी को यह पता चलता है कि उसने अपने शरीर का एक अंग खो दिया है तो यह उसके लिए सबसे कठिन पल होता है यहां पर उसके लिए लोगों का समर्थन ज्यादा महत्वपूर्ण होता है । मेजर का उद्देश्य अपने शरीर का कोई भी खो चुके लोगों को फिर से जीवन खोजने में मदद करना है ।


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