मेरठ। संवाददाता
देश में बुनाई के कई प्रसिद्ध केंद्र हैं और हर केंद्र की अपनी अलग विशिष्टताएं हैं। महिलाओं की साड़ियों और अन्य वस्त्रों की अत्यंत उत्कृष्ट और कलात्मक बुनाई की परम्पराओं को आम तौर पर उन शहरों से जोड़ कर पहचाना जाता है जहां उस विशिष्ट शैली के बुनकर और अन्य कलाकार पारम्परिक रूप से रहते आए हैं।
देश में आधुनिकता और विविधता बढ़ने के साथ ही भारतीय हस्तकला के प्रामाणिक उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ी है लेकिन आज का बाजार नकली उत्पादों और मूल की प्रतिकृतियों से भरा पड़ा है। इन्ही स्थितियों से बचने-बचाने के लिए पद्मशाली उन पारम्परिक बुनकर परिवारों तक पहुंचता है जिन्होंने अनंत काल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन कलाओं का संरक्षण और संवर्द्धन किया है।
विभिन्न नगरों के इन पारम्परिक कलाकारों की प्रामाणिक कारीगरी के नमूनों को ही पद्मशाली द्वारा आयोजित इस प्रदर्शनी में कलाप्रेमियों के सामने रखा गया है। यहां प्रस्तुत की गई साड़ियां और अन्य ड्रेस मटीरियल प्रामाणिक रूप से हमारी समृद्ध विरासत का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस संबंध में प्रदर्शनी की संयोजक आस्था रितु गर्ग का कहना है कि बुनाई कला के बड़े केंद्रों जैसे बनारस, चंदेरी, कांजीवरम, प्राणपुर, भुज, सांगानेर, क़ाकोरी, भागलपुर और ऐसे ही कुछ दूसरे शहरों की गलियों में बसे कलाकार-कारीगर धागों से कपड़े नहीं, सपने बुनते हैं... किसी युवती के सपने, दुल्हनों के सपने। उन महिलाओं और पुरुषों के सपने जो कपड़ों के साथ कला को पहनना-ओढ़ना और जीना चाहते हैं...। पद्मशाली देश के कोने-कोने से इसी कला के उत्कृष्ट नमूनों की तलाश करने और उन्हें कलाप्रेमियों तक पहुंचाने का प्रयास है।